हमारे इतिहास में दिल्ली हमेशा से ही महत्वपूर्ण रही है। हर शासक यही राज करना चाहता था,मुगल शासन काल के पहले इस धरती पर बैठने वाले अंतिम हिंदू राजा थे पृथ्वीराज चौहान और आज हम इस महान योद्धा के बारे में कुछ ऐसी बातें जाने की कोशिश करेंगे जो शायद आप नही जानते।
पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में अजमेर में हुआ था। उनके पिता थे सोमेश्वर चौहान जो अजमेर के चौहान वंश के राजा थे और उनके नाना थे दिल्ली के राजा आनंदपाल पृथ्वीराज बचपन से ही तलवार बाजी और गुड़ सवारी के शौकीन थे,शिकार भी उनका प्रिय खेल था। पृथ्वीराज चौहान ने बचपन में ही बिना किसी हथियार के एक शेर को मार गिराया था।मगर उनकी सबसे बड़ी विशेषता थी शब्दभेदी बाण चलाना,मतलब वो बिना कुछ देखें सिर्फ आवाज के सहारे अपना शिकार कर सकते थे। उनके नाना उनकी इस वीरता को देखकर बहुत प्रसन्न थे जिस कारण उन्होंने पृथ्वी को दिल्ली की राजगद्दी का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और पृथ्वीराज चौहान 16 वर्ष की आयु में दिल्ली के राजा बने। दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद पृथ्वीराज ने एक किले पिथौरागढ़ का निर्माण कराया, पर उनका दिल हमेशा अजमेर में रहा इसलिए उन्होंने दोनों नगरों को राजधानी का दर्जा दे दिया, लगातार विजय अभियान चलाकर उन्होंने अपनी राज्य सीमाओं को गुजरात और पूर्वी पंजाब तक बड़ा लिया था। जिस कारण कई राजा उनसे जलने लगे थे। उनमें से एक थे राजा जयचंद जिनकी राजधानी कन्नौज मे हुई, और उनका राज्य दिल्ली के पूर्व में काफी दूर तक फैला था।लेकिन राजा जयचंद पृथ्वीराज की प्रसिद्ध से जितना जलते थे, उनकी बेटी संयोगिता पृथ्वीराज से उतनी ही प्रभावित थी।वही पृथ्वीराज भी संयोगिता की सुंदरता के कायल थे और वो भी मन ही मन उससे प्रेम करने लगे थे। जब यह बात राजा जयचंद को पता लगी कि उनकी बेटी पृथ्वीराज से प्रेम करती है तो वह गुस्से से आग बबूला हो गए। वे और तो कुछ नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने संयोगिता का विवाह करने का फैसला कर लिया और उन्होंने पृथ्वीराज को अपमानित करने के लिए एक योजना बनाई उन्होंने संयोगिता के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया। जिसमें वह अपनी पसंद का वर चुन सकती थी इस फैसले से संयोगिता की बहुत प्रसन्न थी और वह जयचंद की चाल से अनजान थी। जयचंद ने देश के सभी छोटे-बड़े राजाओं को आमंत्रण भेजा सिवाए पृथ्वीराज के, मगर उसका इससे भी पेट ना भरा इसलिए उसने पृथ्वीराज की मूर्ति बनवाई और उसे द्वारपाल बनाकर विवाह मंडप के प्रवेश द्वार पर रख दिया जब समय हुआ तब संयोगिता जयमाला लेकर आई और बिना किसी राजा के गले में डाले उसने को जयमाला पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में डाल दि। यह देखकर जयचन्द और बाकी राजा सन्न रह गए पर अभी कहानी खत्म नहीं हुई थी। अगले ही पल मूर्ति के पीछे से पृथ्वीराज निकले और उन्होंने संयोगिता का हाथ थामा और घोड़े में बैठाकर ले उड़े। जब तक जयचन्द और अन्य राजा कुछ कर पाते तब तक वह बहुत दूर निकल चुके थे और शीघ्र ही अपने सैनिकों के साथ दिल्ली पहुंच गए इस बीच अफगानिस्तान का शासक मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी भारत की तरफ बढ़ रहा था और उसने पश्चिमी पंजाब में राज कर रहे महमूद गजनवी के वंशजों को हरा कर वहां कब्ज़ा कर लिया था और अपनी सेना लेकर भटिंडा तक पहुंचा। पर यहां से तो पृथ्वीराज की सीमा आरंभ होती थी और पृथ्वी को हराना इतना आसान नहीं था। मगर अपनी जीत के घमंड में गौरी ने भटिंडा के किले पर आक्रमण कर दिया। और उस पर कब्ज़ा कर लिया यह समाचार जैसे ही पृथ्वीराज को मिला वो भटिंडा के लिए निकल पड़े और गौरी से जा भिड़े। गौरी की सेना को पिछली जीत का नशा था।वही पृथ्वीराज की सेना देश भक्ति से ओतप्रोत थी। पृथ्वीराज स्वयं ही अपने सैनिकों को उत्तेजित कर रहे थे।पृथ्वी ने गोरी के कई सैनिकों को अकेले ही मार डाला । यह देख उनकी सेना में उत्साह भर गया था उन्होंने गोरी की सेना पर तीन तरफ़ा हमला किया इतने कठिन मुकाबले की गोरी को उम्मीद न थी। इस युद्ध में गौरी अधमारा हो गया और उसके सैनिकों उसे लेकर भाग खड़े हुए।इस युद्ध में पृथ्वीराज ने लगभग 7 करोड रुपए की संपदा अर्जित की,जिसे उन्होंने अपने सैनिकों में बाट दी। लोगों का कहना है कि पृथ्वीराज ने 18 युद्धों में से गौरी को 17 बार हराया था अपनी पुत्री संयोगिता के अपरहण के बाद जयचन्द के मन में पृथ्वी के लिए कटुता बढ़ती चली गई और उसने पृथ्वीराज को अपना दुश्मन बना लिया। जब उसे महमूद गौरी और पृथ्वीराज के युद्ध के बारे के बारे में पता चला गोरी से जा मिला और दोनों ने मिलकर 2 साल बाद सन 1192 में फिर पृथ्वीराज को युद्ध के लिए ललकारा। इस बार गौरी के पास एक लाख बीस हजार सैनिकों की विशाल सेना थी पृथ्वीराज ने पिछली हार की याद दिलाते हुए गौरी को वापस जाने के लिए कहा इस पर चालबाज गौरी ने अपनी सेना थोड़ी पीछे हटा ली ताकि वह छल कपट की नीति अपना सकें।अपनी सेना लेकर लौटने की बजाये उसने अंदर ही अंदर अपनी तैयारी जारी रखें पृथ्वीराज को लगा उनकी बात मान गया है वो उसकी चाल समझ ना सके और सामान्य रूप से अपना पड़ाव डाले रहे फिर एक दिन बिलकुल सुबह जब सैनिक पूजा पाठ में लगे थे तब गौरी ने अचानक हमला कर दिया और कत्लेआम मचा दिया।और धोके से पृथ्वीराज को चारो तरफ से घेर कर पृथ्वीराज और उनके प्रिय मित्र चंदवरदाई को बंदी बना लिया। धोके की घाट न वीरता से हो सकती है और न साहस से आखिरकार पृथ्वीराज जैसा वीर योद्धा धोखे का शिकार हो गया। बंदी बने हुए पृथ्वीराज को जब गौरी के दरबार में पेश किया गया तब पृथ्वीराज की आंखों का तेज देखकर गौरी घबरा गया।और उसने पृथ्वीराज को नजर झुकाने को कहा मगर पृथ्वीराज नहीं माने और कहा सच्चे राजपूत की नजर सिर्फ मृत्यु ही झुका सकती है और कोई नहीं इस पर गौरी बोखला गया और उसने पृथ्वीराज की आँखे निकालने का आदेश दे दिया, पर पृथ्वीराज की आंखें अपने सामने झुका न सका और आखिरकार उन्हें अंधा कर कर कारागार में डाल दिया गया पृथ्वीराज के राजकवि और उनके प्रिय मित्र चंदवरदाई से पृथ्वीराज की यह दुर्दशा सहन नहीं हुई उन्होंने गौरी के दरबार में हाजिर होकर कहा कि पृथ्वीराज बिना देखे ही अचूक निशाना लगा सकते हैं गौरी को इस बात का विश्वास नहीं हुआ और उसने इस सच्चाई को परखने के लिए पृथ्वीराज को दरबार में बुलाया, एक धनुष और एक बाण पृथ्वीराज के हाथ में थमा दिया गया उनसे कहा गया कि वह अपने धनुष का कमाल दिखाएं पृथ्वीराज ने कहा कि मैं एक राजा हूं मैं किसी का आदेश नहीं मानूंगा मैं तो तभी बाण चलाऊंगा जब सुलतान स्वयं मुझे आदेश देंगे। गौरी ने उन्हें बाण चलाने का आदेश दिया गौरी की आवाज सुनकर पृथ्वीराज को गौरी की दिशा का अंदाजा लग गया। तभी चंदवरदाई ने एक दोहा पड़ा चार बांस चौबीस गज, अंगुर अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान।। इस दोहे में गौरी की दूरी बताई गई थी। अब पृथ्वीराज के पास गौरी की दिशा और दूरी दोनों थी, गौरी की स्थिति का पूरा पता मिलते ही पृथ्वीराज ने शब्दभेदी बाण चला दिया जो सीधा जाकर गौरी के गले में लगा और गौरी वाही चल बसा। इसके पश्चात अपनी दुर्गति से बचने के लिए चंदवरदाई और पृथ्वीराज ने एक दूसरे को छुरा मारकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। कहते है चंदवरदाई और पृथ्वीराज का जन्म एक साथ हुआ था और मरण भी एक साथ हुआ। यह हमारे इतिहास का सबसे बड़ा इक्तफाक है। इस खबर को सुनते संयोगिता ने भी अपने प्राण त्याग दिए। और इस तरह एक वीर योद्धा इतिहास के पन्नों में अपने न मिटने वाली छाप छोड़कर चला गया।
आप पृथ्वीराज के बारे में क्या सोचते है हमें कमेंट करके जरूर बताए और हा आप ये भी बताए की आप किस योद्धा की जीवनी जानना चाहते है
अगर आपको हमारी लिखा पसंद आया हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे और हमारे ब्लॉग को फॉलो करे ऐसी ही इंट्रेस्टिंग हिस्ट्री पड़ने के लिए।

No comments:
Post a Comment